वर्ष 1997 में बैंकों का फंसा हुआ क़र्ज़ 47300 करोड़ रूपये था, जो आज
रिज़र्व बैंक के अनुसार 12 गुना बढ़कर 5.95 लाख करोड़ रूपया हो गया है. ऐसे कर्जों को
बैंकिंग की भाषा में एनपीए कहा जाता है. नॉन परफार्मिंग एसेट्स – एनपीए, बड़े
पूंजीपतियों द्वारा लिया गया एक ऐसा क़र्ज़ होता है, जिसे वे एक निश्चित समय-सीमा
में चुकाने से इंकार करते हैं. यदि लिए गए क़र्ज़ के मूलधन या ब्याज सहित किश्त की
राशि 90 दिनों में या उससे अधिक दिनों तक नहीं पटाई जाती, तो ऐसे क़र्ज़ की वसूली को
संदेहास्पद मानकर उसे एनपीए की श्रेणी में डाल दिया जाता है. इन कर्जों को ‘फंसा
हुआ क़र्ज़’ मानकर बैंकों द्वारा फिर वसूली का प्रयास भी नहीं किया जाता – अर्थात
पूंजीपतियों के लिए एक तरह की यह ‘अघोषित क़र्ज़ माफ़ी’ बन जाती है. ऐसे कर्जों का
भार बैंकों के जमाकर्ताओं, शेयरधारकों और देश के क़रदाताओं को उठाना पड़ता है.रिज़र्व
बैंक के अनुसर बैंकिंग क्षेत्र के कुल बकाया कर्जों का 20-25% ऐसे क़र्ज़ ही हैं, जो
फंसे हुए हैं और इसमें 75% से अधिक हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ही फंसा
हुआ है. 1992 में नवउदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद मुक्त बाज़ार प्रणाली
अस्तित्व में आने से एनपीए का चलन तेजी से बढ़ा है, क्योंकि चालबाज कार्पोरेट घरनों
और बड़े पूंजीपतियों का राजनैतिक प्रभाव और नौकरशाही व बैंक प्रबंधन से सांठगांठ
बढ़ी है.
कुछ शीर्ष बैंकों द्वारा माफ़ किया गया फंसा हुआ क़र्ज़ इस प्रकार है :
बैंक का नाम
|
2015 का एनपीए (करोड़)
|
पिछले तीन सालों का एनपीए (करोड़)
|
1.स्टेट बैंक
|
21313
|
40084
|
2.पंजाब नेशनल बैंक
|
6587
|
9531
|
3.इंडियन ओवरसीज बैंक
|
3131
|
6247
|
4.इलाहाबाद बैंक
|
2109
|
4243
|
5.बैंक ऑफ़ बड़ोदा
|
1564
|
4884
|
6.सिंडिकेट बैंक
|
1527
|
3849
|
7.कैनरा बैंक
|
1472
|
4598
|
8.सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया
|
1386
|
4442
|
9.आईडीबीआई
|
1609
|
--
|
10.यूको बैंक
|
1401
|
--
|
11.बैंक ऑफ़ इंडिया
|
--
|
4983
|
12.ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स
|
--
|
3593
|
योग
|
40899
|
81969
|
इस तालिका से स्पष्ट है कि मोदी सरकार के आने के बाद एनपीए में तेजी
से वृद्धि हुई है. रिज़र्व
बैंक के अनुसार सिर्फ 57 लोग इस देश के बैंकों का 85000
करोड़ रुपया दबाये बैठे हैं. 31, दिसम्बर 2015 की स्थिति में कुछ प्रमुख विलफुल
डिफाल्टर्स कंपनियां और उनका एनपीए (करोड़ रुपयों में) इस प्रकार था :
ज़ूम डेवलपर्स
|
2411
|
रज़ा टेक्सटाइल्स
|
695
|
विसम डायमंड एंड ज्वेलरी
|
2266
|
एस कुमार नेशनलवाइड
|
681
|
फॉरएवर प्रेशियस ज्वेलरी एंड डायमंड
|
1315
|
रामसरूप इंडस्ट्रीज
|
681
|
डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग्स
|
1314
|
एक्सएल इंडस्ट्रीज
|
652
|
किंगफिशर एयरलाइन्स
|
1201
|
स्ट्रलिंग बायोटेक
|
657
|
सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज
|
1102
|
आरईआई एग्रो
|
589
|
बीईटीए नेप्थोल
|
958
|
जीलोग सिस्टम्स
|
565
|
इंडियन टेक्नोमेक कंपनी
|
724
|
रैंक इंडस्ट्रीज
|
568
|
इलेक्ट्रोथर्म इंडिया
|
551
|
एमबीएस ज्वेलर्स
|
517
|
इस एनपीए को वसूलने की बजाये उसने बड़े औद्योगिक
घरानों व धनाढ्यों का फरवरी में 2 लाख करोड़ रुपयों का बैंक-क़र्ज़ राईट-ऑफ कर दिया
(बट्टे-खाते में डाल दिया). इसमें माल्या जैसे भगोड़े भी शामिल हैं.
एक साधारण भारतीय नागरिक अंकों में 6 लाख करोड़
रूपये शायद ही लिख पायें और यदि उसे बताया जाएं कि इसे लिखने के लिए 6 के बाद बारह
शून्य लगाने होंगे, तो शायद उसका दिमाग ही चकरा जाएं. लेकिन यदि इसे उसके जीवन से
जोड़कर समझाने की कोशिश करें, तो शायद कुछ मदद मिलें. तो 6 लाख करोड़ रूपये कितने
होते है? इतने ! :
1.
हमारे
देश में कुल 16-17 लाख करोड़ रुपयों की मुद्रा चलन में है. इसके एक-तिहाई से ज्यादा
यह राशि होती है, जिसे सरकार यदि सख्ती से वसूल लें, तो कोई बजट घाटा नहीं होगा.
हम लाभ के बजट में रहेंगे और जनता को अनावश्यक करों के बोझ से मुक्त किया जा सकता
है.
2.
यह राशि
रेलवे के संपूर्ण आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक राशि के बराबर है या अगले 20 सालों तक
यात्री भाड़ा बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
3.
यह 4
सालों तक हमारे देश की खाद्यान्न सब्सिडी या 8 सालों तक खाद सब्सिडी या 22 सालों
तक पेट्रोलियम सब्सिडी की जरूरतों को पूरा कर सकता है.
4.
अगले 15
सालों तक मनरेगा के लिए बजट जरूरतों को पूरा करने के लिए यह राशि पर्याप्त है.
5.
यह राशि
वर्ष ‘16-17 के रक्षा, शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य और सड़क बजट को पूरा कर सकता है.
6.
गांवों
से संबंधित जरूरतों – कृषि, पेयजल, मध्यान्ह भोजन, बाल विकास, इंदिरा आवास, सड़क,
मनरेगा, शिक्षा – के लिए आवश्यक राशि का तीन सालों तक प्रबंध किया जा सकता है.
7.
इसके
दसवें हिस्से से ही किसानों का संपूर्ण बैंकिंग क़र्ज़ माफ़ किया जा सकता है, जबकि
पिछले बजट में मोदी सरकार ने 21 लाख करोड़पतियों को करों में छूट दी है.
8.
इससे
अगले 33 सालों तक बैंकों की पूंजी-जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.
9.
इस राशि से
अगले 50 वर्षों तक सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में इजाफा किया जा सकता
है.
तो 6 लाख करोड़ रुपयों का एनपीए वसूलने के बजाये
मोदी नोटबंदी के जरिये एक लाख करोड़ रूपये का काला धन निकलने में क्यों लगे हैं? कारण
स्पष्ट है. काले धन के ‘जुमले’ को उन्होंने जिस प्रकार ‘कैशलेस इकॉनोमी’ तक
पहुंचाया है, उसमें कार्पोरेटों की बल्ले-बल्ले हैं, तो एनपीए की वसूली में उनकी
तबाही छुपी है. और श्रीमान मोदी आम जनता के नहीं, कार्पोरेटों के ही प्रतिनिधि
हैं. याद रखिये, यह केवल पिछले कई सालों से जमा एनपीए का ही ‘गणित’ है, कार्पोरेटों
को करों में दी जा रही उन छूटों का नहीं, जो हर साल लगभग 6 लाख करोड़ रूपये के
हिसाब से दी जा रही है और पिछले एक दशक में 50 लाख करोड़ रुपयों से ज्यादा दी जा
चुकी है !!
sanjay.parate66@gmail.com
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