Monday 9 March 2015

भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति और दीमापुर की घटना


भाजपा जिस प्रकार दीमापुर की दुर्भाग्यजनक घटना का संप्रदायीकरण कर रही है और बलात्कार के कथित आरोपी की हत्या को जायज ठहरा रही है, वह बहुत ही आपत्तिजनक है. इसीलिए भाजप से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि-- "क्या वह नागालैंड को भारत का अभिन्न हिस्सा मानती है, जहां इस देश के लोग अपनी रोजी-रोटी का ठिकाना खोज सकते हैं? क्या वह इस देश में रहने वाले मुस्लिमों को भारतीय नागरिक मानने के लिए तैयार है?? और क्या कारण है कि भाजपा इस घटना की निंदा तक करने के लिए तैयार नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय और धार्मिक उन्माद भड़काने में ही लगी हुई है???"
23 फरवरी को कथित बलात्कार होता है, चिकित्सकीय रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं होती, लेकिन 5 मार्च को आरोपी को जेल से निकालकर भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाला जाता है. इस भीड़ के पास आरोपी की फोटो होती है, पुलिस की मौजूदगी में कई किलोमीटर चलकर वह जेल पर धावा बोलती है, फोटो से आरोपी की शिनाख्त करती है और उसे जेल से बाहर निकालकर, नग्न करके, पीटते हुए, कई किलोमीटर परेड करवाने के बाद, मार डालती है और शव को फांसी पर लटका देती है. मुस्लिम समुदाय को हमले का निशाना बनाकर आगजनी की जाती है. सवाल यही है कि बलात्कार की घटना के दस दिनों बाद क्या इसे जनता की स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया माना जा सकता है? स्पष्ट है कि कथित आरोपी के मुस्लिम होने के कारण इस दुर्भाग्यशाली घटना को सुनियोजित रूप से अंजाम दिया गया.
कथित आरोपी का 'अवैध बंगलादेशी घुसपैठी' होने का आरोप ध्वस्त हो चुका है. सवाल यह भी है कि यदि वह 'विदेशी नागरिक' होता भी, तो क्या उसे इस तरह से मारने की इज़ाज़त इस देश की सरकार और नागालैंड का प्रशासन दे सकता है? क्या इसी प्रकार का बर्ताव किसी अमेरिकी नागरिक के साथ करने की हिमाक़त की जा सकती थी? संघी गिरोह को यह भी जवाब देना चाहिए कि यदि आरोपी मुस्लिम के बजाय कोई 'हिन्दू बंगलादेशी' होता, तब भी भाजपा उसकी हत्या के पक्ष में खड़ी होती??
सवाल हमारे संविधान, क़ानून और प्रशासन की निष्पक्षता का है. आरोपी की गिरफ्तारी के बाद, जब तक न्याय-प्रक्रिया से गुजारकर, उसका अपराध सिद्ध न हो जाएं, उसे जान-माल का संरक्षण देना इस देश की सरकार और क़ानून का कर्तव्य है. इस कर्तव्य-निर्वहन में किसी आरोपी की जाति, धर्म या भाषा, और उसकी नागरिकता भी, आड़े नहीं आनी चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय कानून की मान्यता भी यही है. दीमापुर की घटना में इस सबकी धज्जियां उड़ाई गई है और बहुत ही सुनियोजित तरीके से.
जिस देश की संसद में बलात्कार और हत्या के कथित आरोपी बैठे हों, जिस देश की सरकार में दागी जमे हुए हों, जिस देश की सत्ताधारी पार्टी के कई बड़े-बड़े नेताओं के चरित्र पर खुद उसी पार्टी के नेता वीडियो जारी कर कीचड़ उछाल रहे हो, उस पार्टी का 'बलात्कार के खिलाफ हत्या' की इस घटना को जायज ठहराना बेशर्मी की पराकाष्ठा है.धर्म के अधर पर भाजपा और संघी गिरोह का दोमुंहापन खुलकर सामने आ गया है.
भाजपा और संघी गिरोह को यह जवाब देना चाहिए कि इस देश के अल्पसंख्यकों को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है कि नहीं? या उनके मानवाधिकारों की रक्षा के कर्तव्य से ही फेंकू सरकार ने मुंह मोड़ लिया है?

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