Tuesday 7 April 2015

युक्तियुक्तकरण' या 'उदारीकरण' ?

युक्तियुक्तकरण' या 'उदारीकरण' ?
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'उदारीकरण' के लिए संघी शब्दावली है--'युक्तियुक्तकरण'. भाजपा की 'उदार युक्ति' यही है कि आम जनता के पास जो थोड़ी-बहुत सुविधाएं बची है, उसे भी छीना जाएं, ताकि 'खास जनता' की तिजोरियों को भरा जा सकें. आखिर इसी 'खास जनता' ने तो उसे सत्ता में पहुंचाया है, वर्ना वह तो 'खाकी पार्टी' ही बनकर रह गई थी. अब जब वह सत्ता में पहुंच गई है, तो यह उसका कर्तव्य है कि इस 'खास जनता' की सेवा में तन-मन से जुट जाये, ताकि उनके लिए धन की बरसात की जा सकें.
तो 'युक्तियुक्तकरण' के नाम पर पूरे देश में 40000 स्कूल बंद किये जायेंगे. छत्तीसगढ़ में भी 2000 स्कूल बंद होंगे. इसका फायदा निजी स्कूलों को होगा. 'युक्तियुक्तकरण' के नाम पर धान खरीदी कम करने और बोनस बंद करने का फरमान जरी किया जाएं और छत्तीसगढ़ की सरकार अपने चुनावी वादे को भूल जाएं. 'युक्तियुक्तकरण' की जरूरत है कि बची-खुची राशन प्रणाली को ख़त्म कर गरीब जनता को बाज़ार में धकेला जाएं, अमेरिकी खाद्यान्न के लिए मांग पैदा की जाएं. इसमें भी छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार पीछे नहीं रहना चाहती, भले ही लोक-कल्याणकारी राज्य का जो लेबल उसने अपने चेहरे पर लगा रखा है, वह धुल-पूंछ जाये.
केंद्र सरकार की सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट चीख-चीखकर कह रही है कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरे नंबर का कुपोषित राज्य है, जहां के ग्रामीण क्षेत्रों में औसत कैलोरी उपभोग 2162 कलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2205 कैलोरी है.यहां की आम जनता को दूध से मिलने वाला प्रोटीन भी उपलब्ध नहीं है. इसका अर्थ है कि प्रदेश की आधी आबादी कुपोषित है.यहां के किसानों की प्रति माह औसत आमदनी केवल 5177 रूपये है, यानी प्रति व्यक्ति प्रति माह केवल 1015 रूपये प्रति माह. राशन प्रणाली के 'युक्तियुक्तकरण' के नाम से अब इस जनता से कहा जा रहा है कि बाजार में जाकर अपने पेट भरने का इंतजाम करें. राशन दूकान से तो अब उसे केवल 7 किलो अनाज ही महीने में मिलेगा, याने एक समय खाने के लिए केवल 115 ग्राम चावल. स्कूल में पढने वाले मध्यान्ह भोजनार्थी को भी 100 ग्राम चावल खिलाने का प्रावधान है!! अब 'युक्तियुक्तकरण' के नाम से 29 लाख बीपीएल परिवारों को पहले मिलने वाले 35 किलो की तुलना में कम अनाज खिलाया जायेगा, इस कसूर में कि सरकारी परिवार नियोजन की अपील का उन्होंने पूरी ईमानदारी से पालन किया था. लगभग 5 लाख परिवारों को पूरी तरह खाद्यान्न से इस कसूर में वंचित कर दिया जायेगा कि वे सरकारी गरीबी रेखा की पात्रता पूरी नहीं करते.
इस पूरी कसरत में भाजपा की रमन सरकार हर माह 1.75 लाख टन सस्ता अनाज गरीबों के मुंह से छीन रही होगी और सब्सिडी के 100 करोड़ रूपये बचा रही होगी. लेकिन इतने ही अनाज के उपार्जन के लिए गरीबों को 50 करोड़ रूपये ज्यादा खर्च करने पड़ रहे होंगे. यही है इस सरकार की खाद्य सुरक्षा!!...और इसका डंका पिटते रमन-मोदी की जोड़ी को शर्म भी नहीं आती. खाद्यान्न सुरक्षा के नाम पर लोगों को भूखा मारने का ऐसा नंगा राज कहीं देखा है आपने? या फिर से कहीं गुलाम भारत की कोई तस्वीर दिखती है आपको??
सब जानते हैं कि सवाल 'युक्तियुक्तकरण' का नहीं है और ऐसी कोई भी 'युक्ति' जो इस प्रदेश की आम जनता को समग्र रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये आबंटित अनाज की मात्र को आधा करती हो, उदारीकरण-वैश्वीकरण की 'सत्यानाशी' नीतियों से किस तरह जुडती है!! जिस देश में शासक वर्ग और उसकी प्रतिनिधि पार्टियाँ हर साल बजट में देशी-विदेशी कार्पोरेट तबके को 6 लाख करोड़ रुपयों की 'टैक्स-माफ़ी' देती हो, जिस प्रदेश में 'कैग' हर साल 5000 करोड़ रुपयों के घपले-घोटालों को उजागर करता हो, जिस प्रदेश में नीतियां जल-जंगल-जमीन-खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए बनाई जा रही हो, जिस प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हर साल कम-से-कम 2000 करोड़ रुपयों का खुलेआम घपला होता हो, उस प्रदेश में यह तर्क देना कि राशन प्रणाली में सब्सिडी के कारण सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ रहा है और सरकार में इसे वहन करने की ताकत नहीं है, या गरीबों को जिन्दा रखने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी उन्हें काहिल और निकम्मा बनाती है, निहायत ही 'जाहिल' तर्क ही हो सकता है. लेकिन उदारीकरण की गाड़ी ऐसे 'जाहिल' ही खींच सकते हैं.
लेकिन केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार मिलकर ऐसा कदम उठा रही है, तो इसके लिए कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती. आखिर, उसी ने तो ऐसा कानून बनाया था, जो परिमाण में राशन की मात्रा व गरीबों की संख्या, दोनों में कटौती करता है. वामपंथ तो शुरू से ही लक्षित वितरण प्रणाली के खिलाफ रहा है और ऐसी सार्वभौमिक वितरण प्रणाली की मांग करता रहा है, जहां अमीर-गरीब के भेदभाव को नज़रअंदाज़ करके सस्ते अनाज तक सभी जरूरतमंदों की पहुंच को आसान बनाएं. यह कांग्रेस ही थी, जिसने सार्वभौमिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था को न केवल ठुकराया, बल्कि सभी वास्तविक गरीबों की पहचान करने से भी इंकार कर दिया. इसके बजाए उसने राज्यों के लिए गरीबों की काल्पनिक संख्या ही निर्धारित कर दी. यह घोड़े के आगे गाड़ी रखने के समान ही था. यदि एक बार आप गरीबों की संख्या निर्धारित कर देते हैं, तो गरीबी रेखा निर्धारण के वे सभी मानदंड ही बेमानी हो जाते हैं, जो गरीबों को चिन्हित करने के लिए तय किये गए हैं. और ऐसा ही हुआ. गरीब राशन प्रणाली से बाहर होते गए और उनकी जगह फर्जी गरीबों ने ले ली.
दिलचस्प यह है कि इन नीतियों के प्रति कांग्रेस-भाजपा में एक आम सहमति है, सिवा विपक्ष के रूप में दिखावे के विरोध के. कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के उस उस आदेश को मानने से इंकार कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि हर परिवार के लिए कम-से-कम 35 किलो अनाज की व्यवस्था की जाएं. यह न्यूनतम मात्रा थी, न कि अधिकतम, क्योंकि 5 सदस्यों से अधिक के परिवार की आहार-जरूरतें इससे पूरी नहीं होती थी. 7 किलो अनाज किसी व्यक्ति की पोषण जरूरतों को पूरा नहीं करता. आवश्यकता बड़े परिवारों के लिए अतिरिक्त अनाज की व्यवस्था करने की थी, न कि छोटे परिवारों को मिल रहे अनाज की मात्रा में कटौती की. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि भूख के राज को ख़त्म करने के लिए सरकार गोदामों में पड़े अनाज को गरीबों में मुफ्त में बांट दें. तब कांग्रेस ने कहा था कि मुफ्तखोरी से देश बर्बाद हो जायेगा. तब विपक्षी भाजपा विरोध का दिखावा कर रही थी, आज सत्ताधारी भाजपा कांग्रेसी नीतियों को ही लागू कर रही हैं. अब कांग्रेसी विपक्ष विरोध का दिखावा कर रहा है.
तो यह सरकार भले ही खजाने का पैसा बचने के लिए अपना गाल बजाये, इस प्रदेश की 2.5 करोड़ जनता को बाज़ार में धकेल दिया गया है--लुट-पिटकर अनाज मगरमच्छों की तिजोरियों को भरने के लिए. रमन-मोदी जोड़ी का असली मकसद भी यही है. किसानों का एक-एक दाना धान खरीदने के वादे से इंकार के बाद यही होना था कि गरीबों के मुंह से निवाला छीनने की कसरत की जाएं.

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