Wednesday 26 August 2015

कविता-1 : दिखना चाहिए.


हम चाहते हैं
जो है अदिखा
दिखना चाहिए
प्रतिरोध स्वप्न का
धरती पर उतरना चाहिए

धरती पर खड़े हैं जो महल
वे गुंबद गिरना चाहिए
उनके टुकड़ों से
झोपडि़यों की जगह
छोटे-छोटे
साफ-सुथरे
सुंदर घर बनना चाहिए
भूख की यंत्रणा नहीं
हमारे बच्चों की आंखों में
सुख का अहसास पलना चाहिए
उनके सिरों पर न हों
ईंटों का बोझ
नाकों से न बहे रेमट
नषे में न जले उनका जीवन
इस दिखे को अदिखा दिखना चाहिए

कंधों में हो छोटा-सा बस्ता
बस्ते में टिफिन- ताजी दो रोटियों का
आंखों में ज्ञान की भूख
तने हुए सिर पर सुंदर सजीली नाक
कुरूपता के खिलाफ
हमारे बच्चे को
एक सुंदर प्रतिरोध दिखना चाहिए

हम चाहते हैं
प्रतिरोध स्वप्न का
धरती पर उतरना चाहिए
जो है अदिखा
दिखना चाहिए
हवा है अदिखी
हमारी आंखों में दिखनी चाहिए
अमावस का चांद और ग्रहण का सूरज
हमारे ज्ञान में दिखना चाहिए

दिखता है विस्थापन
पलायन है दिखता
भूख गरीबी दिखती है
सबको अदिखा दिखना चाहिए
नदी का पानी
हमारे अन्न-कणों में दिखना चाहिए
अदिखा धरती का गर्भ
हमारे घरों में दिखना चाहिए
खून हमारी रगों में बहता है जो अदिखा
हमारी मेहनत में दिखना चाहिए
प्रतिरोध स्वप्न का
धरती पर दिखना चाहिए
जो है दिखता
उसे अदिखा दिखना चाहिए

हम चाहते हैं
प्रतिरोध का स्वप्न
यथार्थ में दिखना चाहिए
दिनांकः 26/11/2013

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