Sunday 9 August 2015

रमन सरकार का 'सुराज'....

यदि किसी राज्य के विकास को मानव विकास सूचकांक के एक महत्वपूर्ण संकेतक रोजगार की स्थिति से नापा जाएं, तो भाजपाई रमन के 'सुराज' में छत्तीसगढ़ की क्या स्थिति हैं? भारत सरकार के ही रोजगार और श्रम रिपोर्ट के अनुसार, रोजगार देने के मामले में छत्तीसगढ़ 17वें स्थान पर है और पिछले 7 सालों में केवल 13249 लोगों को ही रोजगार मिला है तथा लगभग 15 लाख बेरोजगारों के नाम (बे)रोजगार कार्यालयों में दर्ज है, जबकि हजारों सरकारी पद खाली है, जिन्हें भरने का नाटक चुनावी वर्ष में हर बार होता है.
मनरेगा की भी 2013-14 की रिपोर्ट आ गई है. 42 लाख रोजगार कार्डधारी परिवारों में से केवल 27 लाख (65%) को ही काम मिला, लेकिन 100 दिनों का रोजगार केवल 8% परिवारों को ही नसीब हुआ, जबकि दावा तो 150 दिनों का रोजगार देने का था. कथित रोजगार प्राप्त परिवारों के 6वें हिस्से को तो 15 दिनों का भी रोजगार नसीब नहीं हुआ, जबकि लाखों लोग रोजगार की तलाश में पलायन करके अपने-आपको नरक में ढकेलने के लिए बाध्य होते हैं. कंकर में मशीनों से काम पर कोई रोक नहीं लगी और भ्रष्टाचार में मुख्यमंत्री का जिला भी पीछे नहीं है, जहां पिछले दो सालों में 5 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त भुगतान मजदूरों के नाम पर दर्शाया गया है. साफ़ हैं कि इन पैसों को अफसरों ने ही डकारा है.....जब चोर भये कोतवाल, तो डर काहे का?
.....और गजब देखिये! 10 जुलाई आने में अभी पखवाड़ा बचा है, लेकिन सरकारी दावा है कि वर्ष 2014-15 में 13 हजार परिवारों को 100 दिनों का रोजगार दिया जा चूका है, जबकि इस वित्तीय वर्ष के अभी केवल 85 दिन ही पूरे हुए हैं. इसे कहते हैं आंकड़ो की कलाबाजी....!
....तो रमन सरकार के 10 सालों के 'सुराज' का ये हाल है, तो मोदी सरकार के 5 सालों में कैसा 'सुशासन' आने वाला है, ये तो आप समझ ही सकते है.

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