Sunday 9 August 2015

नुकसान 3 एकड़ का और मुआवजा मात्र 3240 रूपये !!!


आखिरकार जोगेश्वर ने आत्महत्या कर ली. फसल बर्बादी और उस पर चढ़े क़र्ज़ से वह परेशान था. 3 एकड़ धान की फसल हाथियों ने चट कर डाली और वन विभाग ने उसे मुआवजा दिया केवल 3240 रूपये ! यह मुआवजा भी उस तक नहीं पहुंचा, तो अपने सामान को जिंदा रखने के लिए वह आत्महत्या नहीं, तो और क्या करता?? वैसे यह भी सवाल किया जा सकता है कि यदि यह राशि उस तक पहुंच भी गई होती, तब भी क्या वह ख़ुदकुशी नहीं करता??
उसने आत्महत्या की -- विधानसभा में भाजपाई सरकार के इस दावे के तुरंत बाद कि छत्तीसगढ़ में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता, क्योंकि 'रमन इफ़ेक्ट' की किरणें हर किसान के घर तक पहुंच रही है. केंद्र की मोदी सरकार भी शायद छानबीन करें और बताएं कि इतनी खुशहाली के बाद भी उसने आत्महत्या की, तो केवल इसलिए किपहले से उसका कोई प्रेम प्रसंग चल रहा था, इसके बावजूद कि वह नपुंसक था और इस कमजोरी को वह उजागर नहीं होने देना चाहता था. मोदी सरकार ने संसद में कुछ दिनों पहले ही ठीक यही 'महान' खोज की है.
दोनों अपनी जगह ठीक ही है. कोरबा जिले का बुन्देली गांव निवासी जोगेश्वर इतना संपन्न तो था ही कि महाजन उसे ढाई लाख की उधारी दे देते. लेकिन इतनी सम्पन्नता के बावजूद इतनी कायराना हरकत और वह भी सरकार को बदनाम करने के लिए!! आ-त्म-ह-त्या?!! यह नपुंसकता नहीं, तो और क्या है किअपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुडाओ और सरकार को बदनाम करो!!!
सरकार ने उसे बचाने के लिए कितना जोर नहीं लगाया था !! 3420 रुपयों का मुआवजा कुछ कम होता है? इसे पैसों में बदलो, तो यही संख्या 100 गुना बढ़ जाएगी. अब इतना सारा मुआवजा पहुंचाने में समय तो लग्न ही था न ! वन विभाग को ही कटघरे में खडा कर रहा है कि मुआवजा मिल जाता, तो आत्महत्या नहीं करता. भैया, होनी को कौन टाल सकता है ! हमने जोगेश्वर को थोड़े ही कहा था -- प्यार कर, इकरार कर और चढ़ जा फांसी पर !!
अब वन विभाग के पास केवल जोगेश्वर ही है क्या ? कितने सारे संपन्न किसान मुआवज़े के लिए लाइन लगाए खड़े हैं. भैया, अभी तक किसी ने तो आत्महत्या नहीं की. फिर जोगेश्वर ने ही क्यों की? इसका स्पष्ट कारण प्रेम प्रसंग नहीं, तो और क्या हो सकता है??भाई जोगेश्वर, प्रेम तुम करो, प्रेम में धोखा तुम खाओ और फिर आत्महत्या करके हमको बदनाम करो !! इससे बड़ी धोखाधड़ी इस सरकार के साथ और क्या हो सकती है? तुम पर तो चार सौ बीसी का केस चलना चाहिए, ताकि तुम्हारी आत्मा शांति के बजाए पानी मांगती फिरे ! लेकिन हम ही हैं कि ऐसा नहीं चाहते.
भैया, तुमने आत्महत्या कर ली, बढ़िया किया. धरती के बाद अब ऊपर भी अप्सराओं के साथ मजे करो. लेकिन हमको भी चैन से रहने दो -- मां ही लो कि प्रेम प्रसंग और नपुंसकता ही इसका कारण था. भूख, गरीबी, बदहाली, कर्जा, फसल बर्बादी नहीं. हमारे 'विकास' ने जड़-मूल से इसका उन्मूलन जो कर दिया है.

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