Sunday 9 August 2015

जस्टिस दवे, आप संविधान के साथ खड़े हैं या मनुस्मृति के?


बेचारे जस्टिस दवे !! सुप्रीम कोर्ट के इस माननीय न्यायाधीश महोदय के लिए इस देश का संविधान नहीं, मनुस्मृति सर्वोच्च है. याकूब मामले में वे मनुस्मृति उद्धृत कर रहे हैं. कह रहे हैं -- " अगर राजा दोषी को सजा नहीं देगा, तो पूरा पाप राजा पर आएगा." उनको साथ ही ये भी बता देना चाहिए था कि अगर राजा दोषी हो, तो पाप किस पर जायेगा, इस बारे में मनुस्मृति क्या कहती है? गुजरात दंगों को आयोजित करने में जिन 'राजाओं" ने हिस्सा लिया था, उनके बारे में उनके उच्च विचार क्या है?
महोदय, ये वर्णाश्रमी देश नहीं, धर्म-निरपेक्ष देश है. यहां मनुस्मृति नहीं, संविधान लागू है. याकूब को फांसी पर लटकाने के लिए तुम संविधान का हवाला देते तो कोई हर्ज़ नहीं था. तुमने तो उस धर्म ग्रंथ का हवाला दिया है, जो इस देश के बुनियादी सिद्धांतों के ही खिलाफ है. तुमने उस ग्रंथ को उद्धृत किया है, जो 'हिन्दू राष्ट्र' के ध्वज-वाहकों को सबसे ज्यादा प्यारा है, संविधान को कुचलकर जिस पर वे इस कानून को स्थापित करना चाहते हैं और नफरत की इसी बुनियाद को बढाने के लिए याकूब को फांसी पर चढ़ाना चाहते हैं.अब जस्टिस दवे की राजनैतिक विचारधारा किसी से छुपी नहीं है.
जस्टिस दवे को यह बताना चाहिए कि किसी आरोपी, दोषी या अपराधी को बिना संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किये फांसी पर लटकाया जा सकता है? क्या संविधान पर मनुस्मृति को लादा जा सकता है? प्लीज न्यायाधीश महोदय, आप याकूब के साथ भले खड़े न हो, लेकिन यह ज़रूर बताएं कि आप संविधान के रक्षक हैं या मनुस्मृति के?

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