Sunday 9 August 2015

इन तथाकथित विकासवादियों का बस तो चलने से रहा-- वरना...

देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए उन 'बेचारों' ने क्या नहीं किया था? महंगाई बढ़ती रही--वे खामोश ही नहीं रहे, बल्कि तेल-गैस, बिजली-पानी, रेल-बस भाड़ा की कीमतों को बढ़ाकर यज्ञ में आहुति भी डाली,. सरकारी कारखानों को निजी हाथों को बेचा और मजदूरों की छंटनी की. किसानों से जमीन-सब्सिडी छिनी और उन्हें आत्म-ह्त्या करने को मजबूर किया. झोपड़ियों पर रोड-रोलर चलाकर आलीशान राजमार्ग बनाए.दलितों-आदिवासियों-कमजोरों की छाती पर चढ़कर मूंग दला.पूरी ताकत से नंगों को निचोड़ा, भूखों को मारा और गरीबों को कब्र में दफनाया...लेकिन खजाना खाली रहा.
अब ये विकास युग के नए अवतार पुरूष हैं. अब ये खाली खजाना भरना चाहते हैं-- फिर महंगाई बढ़ाकर, तेल-गैस,बिजली-पानी,रेल-बस सभी की कीमतें बढ़ाकर, विदेशी पूंजी को लाकर, मजदूरों-किसानों-दलितों-आदिवासियों-कमजोरों--सबकी मांगों-जरूरतों, रोजी-रोटी को दफनाकर, 120 करोड़ गरीबों के पेट पर कसे बेल्ट को और कस कर....लेकिन तय यही है कि न अर्थव्यवस्था सुधरेगी, न खजाना भरेगा.
खजाना तो तब भरेगा, जब इस देश के 1.75 लाख डॉलर-अरबपतियों की तिजोरियों को खाली किया जाएगा, लेकिन ऐसा करना तो 'उनके लिए' भी राष्ट्र-द्रोह था, 'इनके लिए' भी राष्ट्र-विरोधी' है. खाकी राष्ट्रवाद अम्बानी-अडाणी-टाटा-बिड़ला की तिजोरी भरने का राष्ट्रवाद है. चड्डीधारियों की देशभक्ति विदेशी पूंजी के तलुवे चाटने के लिए है. देशहित से उनका अर्थ है--चंद पूंजीपतियों और सम्पन्नों का हित.
अरे मोदियाईयों-भाजपाइयों-संघी गिरोह के निक्करधारियों, किस बिल में दुबक गए? सब डरपोक, सब कायर! हिम्मत होती, तो कांग्रेसी कुकर्मों के खिलाफ वोट न मांगते, 56 इंच का सीना तानकर कहते-- हमें वोट दो 120 करोड़ जनता को निचोड़कर खजाना भरने के लिए, रेल-बस, बिजली-पानी की कीमतें बढाने के लिए, महंगाई बढाने के लिए, एफ डी आई लाकर देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद करने के लिए, बलात्कारी-भ्रष्टाचारी मंत्रियों-नेताओं को बचाने-बनाने के लिए और देश बेचने के लिए हमें वोट दो.
इन तथाकथित विकासवादियों का बस तो चलने से रहा-- वरना ये 69% जनता को तुरंत छू-मंतर कर दें.

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