Sunday 9 August 2015

'आप' को अभी एक लम्बी यात्रा तय करनी है...


      चुनाव के नतीजे थे, कांग्रेस की मजबूरी और जनता का दबाव --कि दिल्ली में 'आप' की सरकार बन गई. छींका टूटा, लेकिन मलाई भाजपा के हाथ नहीं लगी --खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचते रह गई. एक बार आडवाणी का रथ लालू ने रोका था --इस बार मोदी का रथ केजरीवाल ने रोक लिया. संघी गिरोह की कथित 'विजय यात्रा' कहीं मुंगेरीलाल का सपना बनकर न रह जाएँ.
      लेकिन 'आप' को अभी एक लम्बी यात्रा तय करनी है .दिल्ली ही पूरा भारत नहीं है. पूरे देश की तुलना में दिल्ली छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े गाँव से भी छोटा ही होगा. यह देश सभी मायनों में विविधता से भरपूर है, इसलिए समस्याएँ भी एकरंगी नहीं,बहुरंगी और विविध हैं. समाधान भी विविध ही होगा. भारत की राजनीति भी इसी विविधता को प्रतिबिंबित करती है, जहाँ मतदाता के फैसले किसी एक दल के पक्ष में नहीं,बल्कि गठबंधन के पक्ष में ही आ रहे हैं. इसलिए 'आप' को यदि टिकना है, तो उसे अभी अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा. इस सन्दर्भ में उसे अपनी नीतियों का खुलासा करना होगा की देश के सामने खडी सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्याओं को वह किस नजरिये से देखती है. भ्रष्टाचार और बिजली-पानी के मुद्दे अहम् तो है ही, लेकिन अन्य समस्याओ की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती. नवउदारीकरण की नीतियाँ इन समस्याओ को और विकराल बना रही हैं. इन विनाशकारी नीतियों पर अपना नजरिया बनाये बिना न वह अपना पक्ष चुन सकती है न दिल्ली को फतह कर सकती है--'देश' तो बहुत बड़ी बात है. 'आप' की 'दिल्ली विजय' की खुमारी जितनी जल्दी टूटे उतना अच्छा ................और बेहतर होगा जितनी जल्दी नीतियों पर बातचीत हो.

      'आप' की राजनीति की सबसे बड़ी सफलता यही है कि उसने कांग्रेस और भाजपा दोनों को 'आम आदमी' का दिखावा करने को मजबूर कर दिया है. छत्तीसगढ़ मे नेता प्रतिपक्ष ने लालबत्ती लेने से इनकार कर दिया है और राजस्थान की मुख्यमंत्री ने जान जोखिम मे डालकर, अपनी सुरक्षा मे कटोती करते हुए छोटे बंगले की मांग की है. छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने बिजली दरो मे कटौती की मांग कर दी है. यही मांग विपक्षी भाजपा ने महाराष्ट्र मे की है. हरियाणा मे तो बिजली दरों मे 15 % कटौती का ऐलान भी हो चूका है. 'आप' के उदय और विस्तार से दोनों पार्टियाँ सहमी हुई है और वे 'लोकलुभावन' वादों की ओर अग्रसर है. लेकिन नीतियों के मामले मे एक गहरी चुप्पी, एक ओढ़ी हुई ख़ामोशी बरक़रार है. 

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