Saturday 25 July 2015

घोटाला 47 करोड़ का, जांच 8 साल की और कार्यवाही एक 'चूहे' पर...


2007 में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मनरेगा के कार्यक्रम में तब देश का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया था -- 47 करोड़ का. तब इस कार्यक्रम के नोडल अधिकारी थे कलेक्टर जी. एस. धनंजय, जो मनरेगा के नोडल अधिकारी भी थे, का इस घोटाले को पूरा संरक्षण था. जिला पंचायत अधिकारी थे के. पी. देवांगन, जिनके अगुआई में इस पूरे घोटाले को अंजाम दिया गया था. घोटालेबाज़ीं में भाजपा के बड़े-बड़े नेता शामिल थे, तो ठेकेदार और व्यापारी भी थे. पूरा एक गिरोह काम कर रहा था. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने इस घोटाले को उजागर किया था.
इस घोटाले के खुलासे के बाद देवांगन को निलंबित कर दिया गया गया था और धनंजय को हटा दिया गया था. 2008 में घोटाले की रिपोर्ट भी आ गई, लेकिन फिर भी देवांगन को बहाल कर दिया गया कि वे शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति के मामले में और घोटाला कर सकें.
बेचारे देवांगन तो कल बर्खास्त हो गए, लेकिन इस घोटाले में शामिल नेता-ठेकेदार-व्यापारियों का गिरोह आज भी चांदी काट रहा है और इस सरकार के 'कर्मठ' धनंजय साहब पदोन्नत होकर और भी बड़ी जगह जमे हुए हैं -- और बड़ा घोटाला करने के लिए.
देवांगनजी. किसी भी घोटाले में गाज तो छोटे अधिकारी पर ही गिरती है. भाजपा की रमन-मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति का यही मतलब है!!! कितना भी बड़ा घोटाला हो जाएँ, बलि तो 'चूहों' की ही ली जायेगी!!!!

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