Saturday 25 July 2015

कही हैं निगाहें और निशाना कही और...

खाड़ी और अरब जगत के देशों के पास बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन तेल ही है. इसी तेल पर कब्ज़ा करने के लिए अमेरिका दुनिया-भर का प्रपंच रचता रहता है. कभी उसे इन देशों में कट्टरपंथी सरकारें दिखने लगती हैं और वह यहां जनतांत्रिक सरकारों की स्थापना का जिम्मा उठा लेता है! कभी उसे 'इस्लामी आतंकवाद ' का खतरा नज़र आने लगता है और विश्व-शान्ति की चिंता सताने लगती है !! कभी उसकी ' मानवाधिकार हनन ' के नाम पर नींद उड़ जाती है !!! लेकिन इन तमाम स्वयंभू जिम्मेदारियों और चिंताओं के पीछे अमेरिका की वास्तविक नीयत किसी से छुपी नहीं है.
लेकिन अमेरिका के इस रवैये से पूरी दुनिया तबाह ही हुई है. पहले समस्या पैदा करो, फिर उसका हल युद्ध में खोजो, चाहे संयुक्त राष्ट्रसंघ इसका अनुमोदन तक न कर रहा हो, इस युद्ध के बहाने अपने हथियारों को बेचो और हथियार-उद्योग को पालो-पोसो. कथित आतंकवाद के खिलाफ और जनतंत्र बहाली की लड़ाई में ऐसे गुटों को हथियारों और पैसों से मदद करो, जो अमेरिका के तात्कालिक हितों की पूर्ति तो ज़रूर करते हैं, लेकिन बाद में फिर यही ताकतें दुनिया के लिए ख़तरा बन जाती हैं. फिर इन ताकतों से लड़ने के लिए अपने हथियारों को और चमकाओ. इससे अमेरिकी चेहरे पर तेल की चर्बी तो जरूर चढ़ सकती हैं, लेकिन विश्व जनगण बदहाली की खाई में ही और धंस जाता है.
इराक, ईरान, सीरिया, तुर्की, लेबनान, लीबिया -- सबकी यही कहानी है. ये देश अमेरिकी संत्रास से अभिशप्त है, तो केवल इसलिए कि उनके पास तेल का अथाह भण्डार है. अमेरिका इन देशों में केवल ऐसी सरकारें ही देखना पसंद करता है. जो बिना चूं-चपड़ किये अमेरिकी हितों की ही पूर्ति करती रहें.
यही अमेरिका है, जिसके कारण अल-कायदा का जन्म हुआ. सीरिया के खिलाफ संघर्ष में इसी अमेरिका ने इस्लामवादी गुटों को मदद दी. आज इन्हीं ताकतों का रूपांतरण आई एस(इस्लामिक स्टेट) के रूप में हो चुका है. अब आइ एस के खिलाफ अमेरिका फिर हुंकार भर रहा है -- तमाम विश्व-कानूनों को धता बताते हुए.
दरअसल अमेरिका यही चाहता है कि अरब देश भीषण साम्प्रदायिक टकरावों से गुजरते रहे, वहां अराजकता का बोलबाला हो, गृहयुद्ध चलता रहे. अमेरिका की रोजी-रोटी अरब जगत की अस्थिरता की आंच पर ही सिंक सकती हैं. आई एस पर किया गया ताज़ा हमला इस अंतहीन कहानी का दुहराव भर है. फिलीस्तीन पर इसराइल के हमले में भी अमेरिका की ऐसी ही भूमिका हमने देखी थी..
....और संघी गिरोह और फेंकू सरकार ऐसे ही तिकड़मबाजों के साथ रणनीतिक सहयोग करके 'धन्य' हो रही है. यह सहयोग भारत को अमेरिका का दुम तो बना सकता है, विश्व का सिरमौर नहीं.

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