Saturday 25 July 2015

चोर मचाये शोर....


कोल आबंटन को अवैध करार देने और आबंटन निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस-भाजपा में तू चोर-तू चोर का खेल शुरू हो गया है. कोयला और बिजली का भारी संकट पैदा होने का डर फैलाया जा रहा है. दुष्प्रचार का शोर इतना तगड़ा है कि असली सवाल ओझल हो रहे हैं. जबकि हकीक़त यह है कि :
1. जिन 214 कोल ब्लाकों का आबंटन निरस्त किया गया, उनमें से केवल 44 ब्लाकों में ही कोयला की खुदाई हो रही थी. यदि इनकी सही तरीके से नीलामी हो जाएँ, तो उत्पादनप्रभावित ही नहीं होगा. इसलिए कोयला और बिजली संकट का हल्ला निराधार है.
2. भाजपा का यह तर्क कोई मायने नहीं रखता कि बाजपेयी सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की नीतियों को ही लागू कर रही थी. भाजपा के पास इन अनैतिक नीतियों को खारिज करने का पूरा अधिकार था, लेकिन यदि वह ऐसा नहीं कर रही थीं, तो केवल इसलिए कि वह भी उदारीकरण-निजीकरण की उन्हीं नीतियों की समर्थक है, जिसका श्रीगणेश मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री रहते किया था. यह नीति देश की प्राकृतिक संपदा को पूंजीपतियों के हाथों पानी के मोल सौंपने की ही है.
3. एक ही उद्योगपति को सीमेंट, बिजली और इस्पात प्लांट स्थापित करने के नाम पर कई-कई कोल ब्लॉक सौंपे गए हैं, उनकी वास्तविक जरूरतों का आंकलन किये बिना. 1200 आवेदनकर्ताओं में से चंद पूंजीपतियों को ये कोल ब्लाक किस आधार पर बांटे गए, यह भी स्पष्ट नहीं हैं.
.4. इन पूंजीपतियों ने आबंटित कोल ब्लाकों का उपयोग अपने पांतों के लिए बहुत कम किया है. अधिक़तर ने प्लांट ही नहीं लगाये या अपने प्लांटो की जरूरत से ज्यादा कोयला खोदकर बाज़ार में उंचे भाव पर बेच दिया तथा अवैध रूप से अकूत मुनाफा कूटा. बहुतों ने तो कोयला की खुदाई ही नहीं की और इससे सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रूपये का नुकसान पहुँचाया. कैग के इस आंकलन की पुष्टि अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कर दी है. इन लोगों ने कोल ब्लाक की ताकत के आधार पर अपनी कंपनियों के शेयरों के भाव बढाकर अवैध कमाई की. कुछ लोगों ने तो अपने लाइसेंस बेचकर ही मुनाफा कमा लिया. इस अवैध कमाई को वापस हासिल करने के मामले में कांग्रेस-भाजपा दोनों ही चुप हैं.
5. बिजली और इस्पात का प्लांट लगाने के लिए कोयला खदान विकसित करने के नाम पर इन कंपनियों ने बैंकों से लगभग 8 लाख करोड़ रुपयों का क़र्ज़ ले रखा है, जबकि कोल ब्लाकों में इन्होंने केवल 2 लाख करोड़ रुपयों का निवेश किया है. अब ये पूंजीपति बैंकों के इस क़र्ज़ को हड़पने के चक्कर में लगे हैं और दोनों पार्टियाँ मौन हैं.
6. इन बिजली कंपनियों ने एक यूनिट बिजली का उत्पादन 70-80 पैसे में किया हैं, लेकिन इन्होंने इसे बाज़ार में बेचा 6-8 रूपये प्रति यूनिट की दर से. इस प्रकार 10 गुना ज्यादा तक अवैध कमाई की. इस अवैध कमाई को सरकारी खजाने में लाने के मामले में दोनों पार्टियाँ खामोश हैं.
7. इस पूरे खेल में बड़े पैमाने पर आदिवासियों को उजाड़ा गया, जंगलों को बर्बाद किया गया, पर्यावरण का सत्यानाश किया गया. यदि आबंटन ही अवैध था, तो सरकारी मदद से ये कुकर्म करना भी अवैध ही था. इसलिए विस्थापित आदिवासियों को उनकी मूल जगह पर पुनर्वासित किया जाना चाहिए. पर्यावरण को सुधार जाना चाहिए और इस सबकी भरपाई इन पूंजीपतियों की तिजोरी से की जानी चाहिए. लेकिन दोनों पार्टियाँ इस अहम् सवाल पर चुप्पी साधे हुए हैं.
संघी गिरोह शोर मचाने की बजाय इन सवालों का तार्किक उत्तर देगा ?

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