Saturday 25 July 2015

अरविंद सुब्रमण्यम की नियुक्ति के मायने...


अपने गठन के बाद से ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक (फण्ड-बैंक) अमेरिकी हितों को, खासतौर पर 9वें दशक के बाद से वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीतियों को, पूरे विश्व में लागू करने के हथियार रहे हैं. इन नीतियों को लागू किये जाने के चलते कई देशों की स्वतंत्र अर्थव्यवस्थाएं तबाह हुई है, वहां राजनैतिक अस्थिरता बढ़ी है और अमेरिका को वहां प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से हस्तक्षेप करने में आसानी हुई है.
नरसिम्हा राव सरकार के राज में मनमोहन सिंह को भी इसी फण्ड-बैंक से आयात कर वित्त मंत्री बनाया गया था और उन्होंने वैश्वीकरण की जिन नीतियों को लागू किया था, और कमोबेश बाद की सरकारों ने भी जिसका अनुसरण किया, उसके परिणाम आज देश की जनता के सामने है. भाजपा-संघ की फेंकू सरकार की भी इन नीतियों से कोई असहमति नहीं है, बल्कि यह भी जोर-शोर से उन्हीं नीतियों को लागू कर रही है. इससे हमारे देश का मानव विकास सूचकांक, जो पहले ही गिरावट की ओर है, और ज्यादा तेजी से गिरेगा. ....और इसका मतलब है कि हमारे देश की गरीब जनता की आय, रहन-सहन के स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल तथा पोषण-आहार तक उसकी पहुँच जैसी बुनियादी सुविधाओं में तेजी से कटौती होगी.
भाजपा ने ' सत्ता पलट ' का नारा दिया था, ' नीतियां पलट ' का नहीं. नीतियां तो मनमोहन सिंह वाली ही जारी रहेगी (नए आकर्षक पैकिंग के साथ) और फेंकू महाराज को इसे जारी रखने के लिए ऐसे ही नौकरशाहों की जरूरत पड़ेगी, जो न केवल अमेरिका की साम्राज्यवादपरस्त विचारधारा से दीक्षित हो, बल्कि समय-समय पर 30-35 रूपये की गरीबी रेखा भी निर्धारित कर इस देश की 80% गरीब जनता को बचे-खुचे समाज कल्याण के कार्यक्रमों से भी बाहर धकेलने के लिए इस सरकार की साज़िश में शामिल होने के लिए तर्क प्रस्तुत करें.
सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में अरविंद सुब्रमण्यम की नियुक्ति यही बताती है कि फण्ड-बैंक निर्देशित नीतियों पर ही यह सरकार चलती रहेगी. इससे आप समझ सकते हैं कि इस देश की, इस देश की अर्थव्यवस्था की और इस देश की आम जनता की भावी दशा-दिशा मोदीराज में क्या होगी ?

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