Saturday 25 July 2015

धन्य हैं रमन-मोदी की दूरदृष्टि !!!


छत्तीसगढ़ में सहकारी बैंकों द्वारा प्रति एकड़ 14 हजार रूपये का कृषि ऋण दिया जाता है. जब किसान सोसायटियों में अपनी फसल बेचता है, तो उसको देय राशि से यह ऋण समायोजित कर लिया जाता है तथा बची हुई रकम का ही भुगतान होता है.
अब यदि प्रति एकड़ 10 क्विंटल धान ही खरीदा जायेगा, तो पूरी राशि ऋण में ही समायोजित हो जाएगी और किसानों के हाथ में आएगा शून्य. यदि किसान इससे बचना चाहेगा, तो बैंकों का डिफाल्टर बनेगा और अगले साल उसका खेती करना मुश्किल. मंडियों तक उसकी पहुँच हैं नहीं, या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना सुनिश्चित नहीं है. ऐसे में वह औने-पौने भाव पर बिचौलियों को ही अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर होगा. इसलिए अब सोसाइटी में जाएं या फिर जाएँ मंडी में, दोनों तरफ से किसानों की तबाही तय है.
तो मित्रों, रमन सरकार के इस फैसले के बहुत दूरगामी परिणाम होने वाले हैं. किसानी घाटे का सौदा होगी, तो वे अपनी जमीन का मोह छोड़ेंगे, इससे कार्पोरेटों को उनकी जमीन हड़पने में सुविधा होगी. पूंजीपतियों के पास जमीन जाएगी, तो उद्योग-धंधे लगेंगे, बिल्डिंगें बनेंगी, इससे प्रदेश के विकास की रफ़्तार तेज होगी और प्रदेश का जीडीपी बढेगा. जीडीपी बढ़ेगी, तो कागजों में प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी और विज्ञापनों में यह दावा किया जा सकेगा कि प्रदेश की जनता खुशहाल है. विज्ञापनों में खुशहाली दिखेगी, तो किसानों की बदहाली पर कौन रोयेगा, जो वैसे भी इस प्रदेश के विकास में बाधक बने हुए हैं.
अब यह ना कहो कि इससे प्रदेश में उत्पादन घटेगा या फिर किसान आत्महत्याओं में बढ़ोतरी होगी. हमारे देश के लोगों को खिलाने के लिए अमेरिका में भरपूर उत्पादन हो रहा है, हम तो केवल उसको बाजार दे रहे हैं. वैसे भी हमारे यहां कृषि भूमि का रकबा घटने के बावजूद महाराष्ट्र, आन्ध्र तथा ओड़िशा की कृपा से उत्पादन बढ़ रहा है कि नहीं?...और किसान आत्महत्याओं के आंकड़े तो हमने चमत्कारी ढंग से शून्य कर ही दिए हैं. आगे तो न रहेंगे किसान और न रहेंगी किसान आत्महत्याएं.
रमन-मोदी राज के हे सौभाग्यशाली छत्तीगढ़वासियों, रमन-मोदी दोनों की दृष्टि बहुत दूर तक की है. यह दिव्य-दृष्टि उन्हें दिवंगत कांग्रेसी राज से ही मिली है. इस दिव्य-दृष्टि का नाम है निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण. यह नीति ही छत्तीसगढ़ को पूंजीपति-कार्पोरेटों का और भारत को अमेरिका का सिरमौर बनाएगी. अमेरिका खुश होगा तो हमें भी खुश होने का मौका मिलेगा, वरना....!!!??? आप तो जानते हैं, कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है...और यहां तो हम किसानों की बदहाली ही खो रहे हैं!!!

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