Saturday 25 July 2015

रेल बजट: न कुछ मिलना था, न मिला

लो जी, अब रेल बजट भी आ गया ...और भाड़े के टट्टू इसका गुणगान करने में भी लग गए है. जब तक आम जनता इस बजट को समझेगी और इसके दुष्परिणाम उस तक पहुंचेंगे, तब तक ये अपना काम कर चुके होंगे.
10 दिन पहले ही भाडा बढ़ाया गया है, सो अब इसकी हिम्मत तो नहीं थी, लेकिन ये जरूर याद दिलाया जा रहा है कि हमारी रेल के भाड़े चीन और अमेरिका जैसे विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है...और इसके लिए हमें मोदी का शुक्रगुजार होना चाहिए. वैसे समय-समय पर किराए की समीक्षा सरकार करती रहेगी, इसलिए आम जनता को चीन और अमेरिका के बराबर लाने के लिए बजट तक की प्रतीक्षा सरकार नही कराएगी, क्योंकि पहली बार वैश्विक सरोकारों वाला बजट देश को परोसा गया है!!
वैसे इस बजट की शब्दावली को पिछली कांग्रेसी सरकारों की बजट-शब्दावली से मिलाया जाये, तो ये स्पष्ट हो जायेगा कि जो दावे-घोषणाएं किये गए हैं, वे कितने और कब तक पूरे होंगे, ये तो राम जाने...लेकिन इसकी दिशा स्पष्ट है कि ये दिवंगत कांग्रेस सरकार की नीतियों का ही विस्तार है--उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की दिशा में. 10 रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने और रेलवे में भारी-भरकम विदेशी निवेश से इसकी शुरूआत की जा रही है. इस से आने वाले दिनों में रेलवे में कटनी-छंटनी और बढ़ेगी तथा जनता की बुनियादी सुविधाएं और खस्ताहाल होगी.
न छत्तीसगढ़ को कुछ मिलना था, न मिला इस बजट में. न बस्तर रेल से जुडा, न सरगुजा को कोई सुविधा मिली. राज्य के भाजपाई मंत्रियो ने बजट से पहले दिल्ली तक की दिखावे की खूब दौड़ लगाई और यहां आकर खूब गाल बजाया था, लेकिन माया मिली न राम...सब चुप हैं जैसे ज़बान को लकवा मार गया हो. कोरबा को रायपुर से जोड़ने वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस तक को शुरू नहीं करवा पाए. ले-देकर बिलासपुर-नागपुर सेमी-हाई स्पीड ट्रेन चलेगी, जिस पर रोजी-रोटी के लिए बाहर जाने वाली जनता तो पैर भी नहीं रख पायेगी.
वैसे ही, कांग्रेसी राज के भ्रष्टाचार और नौकरशाही पर लगाम लगाने की कोई योजना सरकार के पास नही है, क्योंकि यह बजट राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है.

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