Saturday 25 July 2015

कृषि संकट और छत्तीसगढ़

कल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या नियंत्रण दिवस था. एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि पिछले साढे तीन वर्षों (25 जनवरी 2011--31 अगस्त 2014) में छत्तीसगढ़ में 17890 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं और यह राज्य तमिलनाडु और आन्ध्रप्रदेश के बाद देश में तीसरे स्थान पर है.
इन आंकड़ों का विश्लेषण बहुत कुछ कहता है. आत्महत्या करने वालों में 93% से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों के हैं. अधिकाँश आत्मघाती लोग 20-29 साल के नौजवान हैं. इनमे बेरोजगारों की संख्या ज्यादा थी. हर साल औसतन 5000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की हैं और उनमें से लगभग 2000 लोग किसान थे.
इसका सीधा अर्थ है -- छत्तीसगढ़ का ग्रामीण क्षेत्र, किसान और किसानी संकटग्रस्त हैं. यहां के लोग बेरोज़गारी से तंग आकर, फसल बर्बाद होने, लाभकारी मूल्य न मिलने और क़र्ज़ में फंसकर आत्महत्या कर रहे है. पिछले 10 सालों में भाजपा राज के दौरान यह संकट और गहरा ही हुआ है.
स्पष्ट है कि भाजपा के बडबोलेपन से लोगों को उनकी समस्याओं से और आत्मघात से छुटकारा नहीं मिल सकता. इसके लिए तो जनपक्षधर नीतियां चाहिए, जो अंधाधुंध मुनाफे की हवस पर आधारित निजीकरण और कारपोरेटीकरण पर लगाम लगायें. लेकिन ऐसी नीतियों को लागू करने का साहस न रमन सरकार में है और न मोदी सरकार में. आखिर इन्हीं देशी-विदेशी कार्पोरेटों की कृपा पर इनकी कुर्सियां जो सुरक्षित हैं.

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