Saturday 25 July 2015

अमेरिकी चाकरी में खड़े ' संघी ' राम...


संघी गिरोह संस्कृति की कितनी ही लम्बी-चौड़ी बात क्यों न करें, लेकिन वास्तविकता यही है कि भारतीय जनमानस से उसका कोई लेना-देना नहीं है, जो राम के प्रति अपनी आस्था ' राम-राम ' के अभिवादन में व्यक्त करती है. राम के प्रति उसकी आस्था लोगों को तोड़ती नहीं, बल्कि जोडती है; जबकि संघी गिरोह की राम के प्रति आस्था उसके ' जय श्रीराम ' के उत्तेजक नारे में प्रकट होती है, जो लोगों को जोड़ती नहीं, बल्कि तोड़ती है. भारतीय जनमानस के राम सौहार्द्र के, अन्याय पर न्याय के विजयी होने का प्रतीक है; जबकि संघी गिरोह के राम कट्टर हिन्दुत्व के, गैर-हिन्दुओं के प्रति घृणा के और दंगों के प्रतीक है. संघी गिरोह के लिए राम के प्रति आस्था का उदघोष ' सांस्कृतिक ' नहीं, बल्कि एक ' राजनैतिक ' काम है, जो उसकी चुनावी नैया पार लगा दें. यही कारण है कि संघी गिरोह राम मंदिर के निर्माण पर फिलहाल कोई जोर नहीं देना चाहता.
राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के घोषणा पत्र में तो है, लेकिन अभी प्राथमिकता में नहीं है, क्योंकि उसका मानना है कि उसे जनता ने 2019 तक का समय दिया है. उसकी प्राथमिकता में तो अभी वे ही मुद्दे हैं, जो अमेरिका के इशारे पर लागू किये जाने हैं -- याने सार्वजनिक उद्योगों का विनिवेशीकरण या निजीकरण करो, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दो और अमेरिका को और ज्यादा लूट का मौका देने के लिए भारत का बाज़ार विदेशियों के लिए खोलो, निजी उद्योगों के लिए सस्ते श्रम का बाज़ार तैयार करो और इसके लिए मनरेगा जैसी ग्रामीण रोज़गार योजनाओं को दफनाओ, असंगठित मजदूरों को संगठित मजदूरों के खिलाफ खड़ा करो और न्यूनतम मजदूरी क़ानून व अन्य श्रम कानूनों को ख़त्म करो, प्राकृतिक संपदा को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करो, आम जनता के लिए बने योजना आयोग और देश के योजनाबद्ध विकास को ' अलविदा ' कहने के बाद पूंजीपतियों के लिए गैर-योजना और अनियोजित विकास को बढ़ावा दो. अमेरिकी चाकरी बजाने के लिए देश के संविधान और संघीय शासन की जितनी ऐसी-तैसी कर सको, करो. इस प्रकार, उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की अमेरिकापरस्त नीतियों को लागू करना ही इस समय भाजपा का प्रमुख एजेंडा है. सत्ता में बने रहने की उसकी सार्थकता इसी में है कि इन नीतियों को और ज्यादा तेजी से लागू करे, वरना कांग्रेस ही क्या बुरी थी !!
लेकिन इस रास्ते पर चलने के दुष्परिणाम जाग-जाहिर है. यह रास्ता जनता में भयंकर असंतोष पैदा करता है. इसी असंतोष का फल कांग्रेस को इस बार भुगतना पड़ा है. इसी असंतोष के कारण अटलबिहारी की ' शाइनिंग इंडिया ' , ' भाजपा अस्त ' में बदल गयी थी. आर्थिक नीतियों से उपजे असंतोष ने पहले भी सत्ताधारी पार्टियों को उखाड़ फेंका है, इसे संघ-मोदी अब अच्छी तरह जान गए हैं.
अगले तीन सालों में यह असंतोष अपने चरम पर पहुँच चुका होगा. तब 2017-18 में राम मंदिर के मुद्दे को सामने लाया जायेगा. तब यह मुद्दा इस देश के लोगों की वर्गीय एकता को तोड़ने और इस जन असंतोष को दबाने-कुचलने के काम में आएगा. राम मंदिर बने या न बने, लेकिन तब 'संघी ' राम पूरे देश के लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने के काम तो आयेंगे ही ! ऐसे संगीन माहौल में ' संघी ' राम हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच दंगा करवाने के काम में नहीं आयेंगे, तो और कब काम आयेंगे ? ' बाबर की औलादों ' के खिलाफ ' हिन्दुत्व ' की रक्षा की लड़ाई में राम मोदी के हाथ की ढाल न बने, तो राम को 'श्रीराम ' बनाने का फायदा ही क्या?
इसलिए मित्रों, 2017-18 में राम फिर प्रकट होंगे, नए अस्त्रों और नए तेवर के साथ. राम मंदिर बने चाहे न बने, लेकिन ' संघी ' राम लोकतंत्र के मंदिर पर 2019 में कब्ज़ा करने में मददगार तो जरूर बनेंगे. ' संघी ' राम को तो अमेरिकी ' मंदिर ' की पुकार को पूरी करना है. 2019 के बाद फिर वही अमेरिकापरस्त नीतियां लागू की जाएँगी और फिर 2022-23 में ' जय श्रीराम ' के नारे लगाये जायेंगे. संघी गिरोह की रणनीति इस देश की जनता से छुपी हुई नहीं है.

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